उत्तर प्रदेशराज्य

स्वतंत्रता के अमर क्रांतिवीरों को नमन व श्रद्धांजलि

पूर्वजों के लहू का परिणाम लीजिए, देश के शहीदों को प्रणाम कीजिए।
देश को आजादी की दवाई मिल गई., ब्रिटिशों की देश से विदाई हो गई।
जाते-जाते वे अखण्डता का खून कर गए, देश के हमारे दो टुकड़े कर गए।
रहने वाले यहां से कूच कर गए, अपने ही अपनों का खून कर गए।
अपनों के गुनाहों का पश्चाताप कीजिए, देश के शहीदों को प्रणाम कीजिए।

शहीद भगत सिंह को याद कीजिए, बलिदान को उनके प्रणाम कीजिए।
अहिंशा जो अबतक कर न पाई, वो हिंसा की छोटी गोली काम कर गई।
एसेंबली में आजम बम फोड फिर दिए, बहरे गोरों को सुना वो दिए।
जन-जन में क्रांति की ज्वाला दे गए, फांसी पर हंसते-हंसते झूल वो गए।
उनके इंकलाब को याद कीजिए, देश के शहीदों को प्रणाम कीजिए।

अल्फ्रेड पार्क का नाम लीजिए, आजादी के दीवाने आजाद को भी याद कीजिए।
आंदोलन की चिंगाही जो कर न पाई, वो युक्ति आजाद की काम कर गई।
वो काकोरी ट्रेन का कांड कर गए, अपनों की गददारी शिकार हो गए।
आजाद धरा पर वह थे आए और गोली मार स्वयं को आजाद कर गए।
अंग्रेजों में बैठे उनके भय को याद कीजिए, देश के शहीदों को प्रणाम कीजिए।

जय हिंद का नाम लीजिए, तुम मुझे खून दो नारे को भी याद कीजिए।
दिल्ली कूच की तैयारी हो गई, गोरों के मन में ये भय कर गई।
वौ सैनिकों के मन में जज्बा भर गए, क्रांति को नई वो दिशा दे गए।
दिशा देकर वो अमर हो गए, अमर गाथा लिखते वो गुमनाम हो गए।
उनके बलिदान को भी याद कीजिए, देश के शहीदों को प्रणाम कीजिए।

बटुकेश्वर, अशफाक, बिस्मिल को भी याद कीजिए, सुखदेव, राजगुरु को प्रणाम कीजिए।
इन सबकी लड़ाई अपना काम कर गई, ब्रिटिशों को तोड़ने का काम कर गई।
देश को गुलामी से वो मुक्त कर गए, पूरे देश को वो ऋणी कर गए।
आजादी की खातिर वो परवाने हो गए, जाते-जाते देशभक्ति का संदेशा दे गए।
आज हर क्रांतिकारी को याद कीजिए, देश के शहीदों को प्रणाम कीजिए।

रचनाकार : रमेश कुमार ‘रुद्र’, दुधवा टाइगर रिजर्व, लखीमपुर-खीरी।

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