उत्तर प्रदेशराज्य

नशा मुक्त भारत : संकल्प से सिद्धि की ओर एक जनआंदोलन

यह केवल अभियान नहीं, यह एक राष्ट्रीय चेतना है. ‘नशा मुक्त भारत’ कोई नारा नहीं, यह राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है। यदि भारत को भविष्य में एक समर्थ, समरस और संस्कारित राष्ट्र बनाना है, तो आज ही हमें यह संकल्प लेना होगा. “हम नशा नहीं करेंगे, नशे को सहन नहीं करेंगे, और अगली पीढ़ी को बचाएंगे।” यह अभियान अधिकारियों का नहीं, हमारे अंतःकरण का है। जब नशे को सामाजिक अपराध की तरह देखा जाएगा, जब संस्कार को सम्मान और नशे को तिरस्कार मिलेगा, तब जाकर यह देश वास्तव में स्वतंत्र होगा, क्योंकि असली आजादी तब होती है जब आत्मा नशे की गुलामी से मुक्त हो. काशी से ‘नशा मुक्त भारत’ की नई शुरुआत, आध्यात्मिक चेतना से युवाओं को मिला दिशा-संकेत है. ‘काशी घोषणापत्र’ ने युवाओं के नेतृत्व में नशामुक्ति आंदोलन का पांच वर्षीय खाका प्रस्तुत किया।

सुरेश गांधी

जब राष्ट्र के भविष्य को नशे की लत निगलने लगे, तब किसी सरकार की नहीं, समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वह चेतना का दीप जलाए। आज भारत, विशेषकर उसका युवा वर्ग, मादक पदार्थों की गिरफ्त में आता जा रहा है। यह न सिर्फ स्वास्थ्य और शिक्षा की हानि है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी छिन्न-भिन्न करने वाली स्थिति है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा चलाया गया ‘नशा मुक्त भारत अभियान’, अब मात्र एक सरकारी कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि यह एक राष्ट्रीय जनचेतना आंदोलन का रूप लेता जा रहा है। हाल ही में देशभर की 113 सामाजिक और आध्यात्मिक संस्थाओं, जनप्रतिनिधियों और शिक्षाविदों ने मिलकर एक राष्ट्रीय नशा मुक्ति संवाद आयोजित किया, जिसने देश के नीति-निर्माताओं से लेकर पंचायत स्तर तक एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इस संवाद में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री शिव प्रताप शुक्ल की भूमिका विशेष उल्लेखनीय रही, जिन्होंने अपने प्रदेश में ‘हिमाचल मॉडल’ के रूप में जो अभियान खड़ा किया, वह अब राष्ट्र को राह दिखा रहा है।

आज सबसे बड़ा संकट यह है कि नशा अब महज युवाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि 8 से 14 वर्ष के स्कूली बच्चे भी इसकी चपेट में आ चुके हैं। यह आंकड़ा केवल भयावह नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मा को झकझोरने वाला है। क्या यह केवल कानून से रोका जा सकता है? नहीं। यह एक संस्कार की लड़ाई है, जिसका आधार बनेगा शिक्षा, ध्यान, आत्मबोध और सामाजिक सहभागिता। विद्यालयों में बच्चों को नशा न करने की शपथ दिलाना, नशा मुक्त छात्र प्रमाण-पत्र देना, खेल एवं ध्यान केंद्रों की स्थापना करना, जैसे कदम आज बेहद आवश्यक हैं। यह लड़ाई स्कूल से शुरू होनी चाहिए, तभी समाज में सार्थक परिवर्तन आएगा। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने यह स्पष्ट किया कि नशे की रोकथाम तभी संभव है, जब समाज मांग करना बंद कर दे। आपूर्ति रोकना पुलिस का काम हो सकता है, लेकिन मांग को समाप्त करना समाज और परिवार का दायित्व है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में जो पहल की, वह अब एक राष्ट्रीय उदाहरण बन रहा है। हर पंचायत को जागरूक कर, युवाओं को जोड़कर, नशा विरोधी समितियाँ गठित की गईं। विद्यालयों में नशा मुक्त प्रवेश शपथ, सामाजिक बहिष्कार के जरिए ड्रग पेडलर्स पर नियंत्रण, और सांस्कृतिक गतिविधियों से युवाओं को जोड़ना, यह सब उसी प्रयास का परिणाम है। भारत की हर राज्य सरकार को इस ’हिमाचल मॉडल’ से प्रेरणा लेकर अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार रणनीति बनानी होगी।

ब्रह्माकुमारी, जीवन विद्या मिशन, रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार, निरंकारी मिशन जैसे संगठनों की सक्रिय भागीदारी इस अभियान को एक गहरी आत्मिक और मनोवैज्ञानिक दिशा दे रही है। नशा केवल एक रासायनिक लत नहीं, बल्कि यह आत्मा की रिक्तता का परिणाम है। जब व्यक्ति भीतर से खाली होता है, तब वह बाहरी उत्तेजनाओं में अर्थ तलाशता हैकृ और वही नशा बन जाता है। ध्यान, योग, सत्संग और सेवा की भावना के माध्यम से जो आत्मबोध उत्पन्न होता है, वह किसी भी नशे से कहीं अधिक शक्तिशाली आनंद प्रदान करता है। यही वह राह है, जो इस अभियान को स्थायी सफलता की ओर ले जा सकती है। इस संवाद में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी था कि पंचायत निधि, मनरेगा और ब्ैत् बजट का एक हिस्सा अब नशा मुक्ति अभियान और युवा संस्कार केंद्रों में निवेश किया जाए। यदि हर ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में एक नशा जागरूकता दीवार, एक खेल मैदान, और एक ध्यान/संस्कार केंद्र स्थापित कर दे, तो नशा के विरुद्ध लड़ाई की मजबूत नींव गाँव से ही तैयार हो जाएगी। इसके साथ-साथ मीडिया, सिनेमा, डिजिटल प्लेटफार्म पर भी जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है। हर प्रभावशाली व्यक्ति, नेता, अभिनेता, संत, शिक्षक, यदि एक स्वर में यह कहे : “नशा नहीं करेंगे, और नशा करने वालों को रोकेंगे,” तो एक नैतिक क्रांति संभव है। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। यदि यह युवा वर्ग ही नशे की गिरफ्त में आ जाए, तो न राष्ट्र की प्रगति संभव है और न ही सभ्यता की रक्षा। इसलिए यह आवश्यक है कि इस अभियान को मात्र प्रशासनिक आदेश या भाषणों तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे युवाओं के नेतृत्व में एक जनांदोलन के रूप में विकसित किया जाए। कॉलेजों में ‘नशा मुक्त छात्र संघ’, गांवों में ‘युवा नशा विरोधी समिति’, और जिलों में ‘सामाजिक न्याय मंच’ बनाकर इस लड़ाई को जन-जन तक पहुं चाना होगा।

राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनी काशी। रुद्राक्ष अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में आयोजित युवा आध्यात्मिक शिखर सम्मेलन के समापन अवसर पर ‘काशी घोषणापत्र’ को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया। यह घोषणापत्र 2047 तक नशा मुक्त भारत की संकल्पना को मूर्त रूप देने वाला दस्तावेज है, जिसमें युवाओं को इस महाअभियान का अग्रदूत माना गया है। यह सम्मेलन न केवल युवाओं की शक्ति और आध्यात्मिक चेतना का संगम था, बल्कि भारत की सामाजिक संरचना में सकारात्मक परिवर्तन का बीज बोने वाला आयोजन भी। 600 से अधिक युवा नेता और 120 से अधिक आध्यात्मिक-सांस्कृतिक संगठनों के प्रतिनिधि इस समागम में शामिल हुए। सम्मेलन के चार सत्रों में मादक पदार्थों की तस्करी, मानसिक प्रभाव, पुनर्वास और जन-जागरूकता अभियानों पर गंभीर विमर्श हुआ। डॉ. मनसुख मांडविया, केंद्रीय युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री, ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “यह केवल घोषणा नहीं, बल्कि भारत की युवा शक्ति का साझा संकल्प है। भारत की आध्यात्मिक शक्ति अब इस नशा मुक्ति अभियान की रीढ़ बनेगी।“ उन्होंने इस अभियान को जन आंदोलन बनाने पर बल दिया और कहा कि यह केवल सरकारी प्रयास नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं की साझेदारी से ही सफल होगा।

काशी घोषणापत्र में प्रमुख रूप से इन बातों को रेखांकित किया गया
नशे को एक बहुआयामी सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक संकट मानते हुए नीति निर्माण. आध्यात्मिक, शैक्षिक, तकनीकी और सांस्कृतिक पहलुओं का समावेश. संयुक्त राष्ट्रीय समिति, वार्षिक प्रगति रिपोर्ट और पुनर्वास सेवाओं हेतु राष्ट्रीय मंच का गठन. युवाओं के नेतृत्व में ‘माय भारत’ के अंतर्गत जन-जागरूकता व शपथ अभियानों की शुरुआत. घोषणापत्र की समीक्षा वर्ष 2026 के ‘विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग’ में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने कहा, काशी सनातन चेतना का केंद्र है। हम केवल एकत्र नहीं हो रहे हैं, बल्कि एक राष्ट्रीय परिवर्तन के बीज बो रहे हैं।“ उन्होंने चेताया कि यदि भारत जैसे युवा राष्ट्र में 65 फीसदी आबादी मादक द्रव्यों की चपेट में आ गई, तो केवल वही युवा भविष्य का निर्माता होगा, जो इससे मुक्त होगा।

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