मोबाइल, नशा और रील की लत छोड़ो, भारत जोड़ो! : डॉ. मांडविया

काशी से निकला नशा मुक्ति का मंत्र, युवा बनेंगे राष्ट्रनिर्माता
नशा नहीं, नवचेतना चाहिए : काशी सम्मेलन में युवाओं ने ली विकसित भारत की शपथ, 2047 तक नशामुक्त भारत का लक्ष्य, युवाओं के हाथों में देश का भविष्य, मोबाइल-रील छोड़ो, देश जोड़ोः काशी में जागी युवा चेतना, युवा आध्यात्मिक शिखर सम्मेलनः काशी से उठी ’नशामुक्त भारत’ की चेतना
–सुरेश गांधी
वाराणसी : “यदि भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो इसकी बुनियाद आज के नशामुक्त, जागरूक और संस्कारित युवाओं के हाथों रखनी होगी।“ यह संदेश शनिवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर से देशभर के युवाओं के माध्यम से पूरे भारत में गूंज उठा, जब केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने ’विकसित भारत के लिए नशामुक्त युवा’ विषय पर आयोजित युवा आध्यात्मिक शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया।
यह दो दिवसीय शिखर सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ’पंच प्राण’ दृष्टि और अमृतकाल की आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसमें देश के 122 से अधिक आध्यात्मिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों के 600 से अधिक युवा प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जो नशा उन्मूलन और नैतिक पुनर्निर्माण की इस क्रांति का हिस्सा बन रहे हैं।
काशी से उठी राष्ट्रीय चेतना
काशी, जो स्वयं शिव की नगरी और सनातन चेतना का केंद्र है, अब नशामुक्त भारत आंदोलन का अग्रदूत बनकर उभरी है। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए डॉ. मांडविया ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “भारत केवल तब विकसित राष्ट्र बन सकता है, जब इसके युवा नशे, मोबाइल की लत और आभासी रील संस्कृति से खुद को बचाकर समाज व राष्ट्र के पुनर्निर्माण में सहभागी बनें।“ उन्होंने चेताया कि केवल शराब, ड्रग्स या अफीम ही नहीं, बल्कि मोबाइल फोन की लत, इंस्टाग्राम रील्स, गेमिंग की व्यसनशीलता भी आज के युवाओं को खोखला कर रही है, जो किसी नशे से कम घातक नहीं।
’युवाओं को लाभार्थी नहीं, परिवर्तनकर्ता बनाएं
केंद्रीय मंत्री ने युवाओं को केवल लाभार्थी के रूप में नहीं, बल्कि “परिवर्तन के वाहक“ के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने जोर देकर कहा, “नशा सिर्फ व्यक्तिगत हानि नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय प्रगति का शत्रु है। जब युवा दिशाहीन होते हैं, तो राष्ट्र की दिशा भी डगमगाती है।“

धार्मिक मंचों को बनाएं नशा विरोधी मंच
डॉ. मांडविया ने एक क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि धार्मिक और आध्यात्मिक मंचों को अब नशा विरोधी आंदोलन का हिस्सा बनना चाहिए। मंदिरों, गुरुद्वारों, मठों और धर्मसभाओं से नशामुक्ति का आह्वान होना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें एक-एक नागरिक को प्रेरित करना है कि वह कम से कम पाँच अन्य युवाओं को इस अभियान से जोड़े। नशा मुक्ति अब केवल एनजीओ का काम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का आंदोलन बनना चाहिए।“
‘काशी घोषणा’ होगी आंदोलन की ध्वजवाहक
सम्मेलन का समापन 20 जुलाई को ‘काशी घोषणा’ के उद्घोष के साथ होगा। यह दस्तावेज सिर्फ एक संकल्प पत्र नहीं, बल्कि युवाओं और आध्यात्मिक संगठनों के सामूहिक विचार और राष्ट्रीय संकल्प की अभिव्यक्ति होगा। यह नशामुक्त भारत के लिए एक विस्तृत कार्य योजना और दिशानिर्देशक चार्टर के रूप में सरकार, नीति निर्माताओं, युवा संगठनों और जनप्रतिनिधियों के लिए पथप्रदर्शक बनेगा।
चार प्रमुख सत्रों में राष्ट्रनिर्माण की योजना
सम्मेलन को चार गहन विषयगत सत्रों में विभाजित किया गया है, जो नशामुक्त भारत की नींव को ठोस दिशा देंगे, 1. नशे की आदतः मनोवैज्ञानिक समझ और युवाओं पर प्रभाव. 2. नशे के नेटवर्क और वाणिज्यिक हितों को तोड़ने की रणनीति. 3. प्रभावी जनसंचार, अभियान और जमीनी पहुंच रणनीतियां. 4. 2047 तक दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और युवाओं की भूमिका. इन सत्रों में मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, नीति, और संचार विशेषज्ञों के साथ-साथ पूर्व नशा पीड़ित युवाओं के अनुभव भी साझा किए जा रहे हैं।
राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में युवा आहुति दें
केंद्रीय मंत्री ने युवाओं से आह्वान किया कि “शक्ति का प्रदर्शन युद्ध में नहीं, चरित्र निर्माण में हो।“ भारत के युवा आज यदि रील से रियलिटी की ओर लौट आएं, तो 2047 से पहले ही भारत विश्वगुरु बन सकता है।
युवा शक्ति को प्रेरित करने वाली कुछ और मुख्य बातें
“नशा भारत को खोखला कर रहा है, युवा अगर जागे तो भारत खुद को फिर से गढ़ सकता है।“
“मोबाइल एक उपकरण है, उसका स्वामी बनें, दास नहीं।“
“आध्यात्मिकता का अर्थ है दृ अनुशासन, आत्म-ज्ञान और आत्म-नियंत्रण। यही नशामुक्ति का मूल है।“
काशी से देश को मिला नया नारा : “नशा छोड़ो, भारत जोड़ो : युवा उठो, राष्ट्र गढ़ो“
वाराणसी का यह सम्मेलन केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि ’नवभारत निर्माण’ की आध्यात्मिक और सामाजिक घोषणा है। यह उस भारत की शुरुआत है, जो रील नहीं, रियल राष्ट्रवाद में विश्वास करता है; जो नशा नहीं, दिशा चाहता है; जो केवल युवाशक्ति नहीं, संस्कारित युवाशक्ति के बल पर आगे बढ़ना चाहता है। काशी की इस पहल से उम्मीद है कि देशभर में जनआंदोलन की लहर उठेगी और भारत वर्ष 2047 से पहले ही नशामुक्त, विकसित और जागरूक राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर प्रतिष्ठित होगा।