काशी में घाटों ने ली गंगा समाधि, जलधार में घिरी गलियां, थमीं रफ़्तार

बढ़ते जलस्तर से पंचगंगा, दशाश्वमेध, मणिकर्णिका समेत तमाम घाट जलमग्न
गलियों तक पहुंचा पानी, हजारों लोग प्रभावित, प्रशासन सतर्क, राहत और बचाव कार्य जारी, गंगा आरती, जो घाटों की पहचान थी, अब छतों से कराई जा रही है, 1978 की भयावह बाढ़ की परछाईं फिर लौटती दिख रही, प्रशासन हाई अलर्ट पर, श्रद्धालुओं व आमजन की परीक्षा का समय
–सुरेश गांधी
वाराणसी : गंगा मैया की गोद में बसी अविनाशी काशी इन दिनों उनकी ही असीम जलधारा में घिरती जा रही है। सावन में जहां हर साल घाटों पर हर-हर महादेव की गूंज होती थी, इस बार वहीं घाट जल समाधि में डूब चुके हैं। दशाश्वमेध से लेकर अस्सी घाट तक हर पगडंडी जलमग्न है। जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है, और गंगा अब गलियों की ओर कूच कर चुकी है। बाढ़ से प्रभावित इलाकों में एनडीआरएफ और प्रशासन की टीमें लगातार बचाव में जुटी हैं, लेकिन काशी का हृदय, इसके घाट अब पूरी तरह गंगा की लहरों में समा गए हैं। गंगा आरती, जो घाटों की पहचान थी, अब छतों से कराई जा रही है।
बता दें, सदियों से गंगा को जीवनदायिनी माना गया है, भारत की आत्मा, संस्कृति और आस्था की प्रतीक। परंतु जब यही गंगा अपनी मर्यादा तोड़ती है, तब वह केवल नदी नहीं, महाशक्ति बनकर प्रहार करती है। इस समय वाराणसी इसी प्रहार के दौर से गुजर रहा है। पिछले कुछ दिनों से गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। काशी में अब घाटों की सीढ़ियां नहीं, पानी की लहरें दिख रही हैं। गंगा का प्रवाह अब शांत नहीं, उग्र है. इतना उग्र कि नमो घाट से लेकर मणिकर्णिका तक सब कुछ डूब रहा है।

काशी की आत्मा माने जाने वाले 84 घाटों में अधिकांश पूरी तरह जलमग्न हो चुके हैं। अस्सी घाट, जो युवाओं की रचनात्मकता और जीवन संवाद का केंद्र रहा, अब जलसमाधि में है। हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट, जहां अंत और मोक्ष का मिलन होता है, अब अंतिम संस्कार के लिए अनुपयुक्त हो रहे हैं। मणिकर्णिका पर लकड़ी व्यवसायियों ने अपना स्टॉक हटाना शुरू कर दिया है। घाटों की सीढ़ियों पर अब सिर्फ नाममात्र की ऊंचाई बची है, गंगा गलियों की ओर बढ़ रही है।
नमो घाट पर लगा गंगा का ग्रहण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से विकसित नमो घाट, जो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का प्रतीक था, अब संकट का दृश्य बन चुका है। “नमस्ते” आकार में बना विशाल स्कल्पचर अब आधा से ज्यादा जल में डूब चुका है। बाह अब सिर्फ उसकी हथेलियां ही दिख रही है। घाट की हेलीपैड सुविधा और सीढ़ियां अब पानी के घेरे में हैं। प्रशासन ने यहां सेल्फी, स्नान और नीचे जाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
वरुणा में पलट प्रवाह : काशी के मोहल्लों में घुसा पानी
गंगा की बाढ़ से वरुणा नदी में पलट प्रवाह शुरू हो चुका है, जिससे हालात और गंभीर हो गए हैं। सरैया, कज्जाकपुरा, कोनिया, शिवपुर, नगवां जैसे इलाके जलभराव से प्रभावित हैं। ई घरों में गंगा और वरुणा का पानी घुस चुका है, जिससे लोग राहत शिविरों में शरण लेने पर मजबूर हैं। सलारपुर के चमेलिया बस्ती सहित कई निचले इलाकों में लोग अपने सामान के साथ पलायन कर रहे हैं।

रेल और सड़क यातायात पर असर, मालवीय पुल पर ट्रेनों की गति धीमी
बढ़ते जलस्तर ने अब इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी असर डालना शुरू कर दिया है। राजघाट पुल (मालवीय ब्रिज) पर रेलगाड़ियाँ अब धीमी गति से चलाई जा रही हैं। स्थानीय सड़कें पानी में डूबने लगी हैं, जिसके चलते आवागमन बाधित हो रहा है। नगर निगम ने चेतावनी जारी की है कि गलियों में जलप्रवाह की स्थिति बनी तो बिजली आपूर्ति भी बंद की जा सकती है।
1978 की बाढ़ की आशंका, बुजुर्गों की आंखों में डर
काशी के बुजुर्ग आज भी 1978 की भीषण बाढ़ को याद करते हुए सहमे हुए हैं। उस वर्ष गंगा ने 73.90 मीटर की ऊंचाई पर पहुँचकर पूरे शहर को अपनी लहरों में डुबो दिया था। 2025 में अब तक 68.92 मीटर का जलस्तर दर्ज हो चुका है, जो हर घंटे 1 सेंटीमीटर बढ़ रहा है। वॉर्निंग लेवल 70.26 मीटर और खतरे की सीमा 73.90 मीटर है, यानी अब सिर्फ कुछ मीटर की दूरी बाकी है। बुजुर्गो का कहना है कि 1978 में काशी ने इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ देखी। घाट, मंदिर, मोहल्ले सभी डूब गए। राहत के संसाधन सीमित थे, प्रशासनिक ढांचा कमजोर। 2013 में भारी बारिश व हिमालयी पानी के कारण एक बार फिर खतरे की घंटी बजी, लेकिन 70 के दशक जैसी आपदा नहीं हुई। 2025 में वैज्ञानिक चेतावनियों, सतर्क प्रशासन और तकनीकी निगरानी के बावजूद, प्राकृतिक असंतुलन, जल निकासी की बाधाएं और अतिक्रमण इस बार स्थिति को पुनः भयावह बना सकते हैं।
श्रद्धालुओं की आस्था पर भी भारी पानी
श्रावण मास में जब काशी लाखों श्रद्धालुओं से गुलजार रहती है, इस वर्ष दृश्य विपरीत है। कांवड़ियों के लिए प्रशासन ने विशेष रूट डायवर्जन किया है। दर्शनार्थियों को अब घाटों की बजाय मंदिरों की छतों और गलियों से होकर दर्शन करवाया जा रहा है। श्री काशी विश्वनाथ धाम, तेलियानाला संकटमोचन, काशी कराल भैरव, आदि केशव, अन्नपूर्णा मंदिर, सभी स्थलों पर सुरक्षा और जलभराव के विशेष इंतज़ाम किए गए हैं।

प्रशासन सतर्क, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ तैनात
नगर निगम, बाढ़ नियंत्रण विभाग, और जिला प्रशासन की टीमें चौकसी बरत रही हैं। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की यूनिटों को तटवर्ती इलाकों में तैनात किया गया है। स्कूलों में अस्थायी राहत शिविरों की स्थापना, स्वास्थ्य टीमों की तैनाती और पेयजल आपूर्ति की वैकल्पिक व्यवस्था शुरू की गई है।
मंथन की जरुरत
काशी की गंगा केवल एक नदी नहीं, संस्कृति की लय है। पर जब प्रकृति अपनी सीमा तोड़ती है, तो उसका उत्तर केवल इंजीनियरिंग से नहीं, समझ और संयम से देना होता है। यह संकट हमारे नदी प्रबंधन, अतिक्रमण, जल निकासी और जलवायु परिवर्तन की उपेक्षा का दुष्परिणाम भी है। अब वक्त आ गया है कि हम “गंगा को स्वच्छ बनाने” से आगे बढ़कर गंगा को स्थायी और संतुलित बनाए रखने की नीति पर गंभीरता से सोचें।
वाराणसी में गंगा जलस्तर की ऐतिहासिक तुलना तालिका
वर्ष दर्ज जलस्तर (मीटर में) जलस्तर वृद्धि की रफ्तार
1978 73.90 मीटर बहुत तेज (1.5 से 2.0 सेमी/घंटा)
सम्पूर्ण शहर जलमग्न
2013 72.90 मीटर मध्यम (1.0 सेमी/घंटा)
घाट डूबे, मोहल्लों तक पानी चेतावनी स्तर से ऊपर
2025 68.92 मीटर (16 जुलाई सुबह 8 बजे) लगभग 1.0 सेमी/घंटा
जलस्तर तुलना ग्राफ (टेक्स्ट आधारित)
74मी ┤ ▓▓▓▓▓ ← 1978 (73.90उ – सर्वाधिक बाढ़)
73मी ┤ ▓▓▓▓
72मी ┤ ▓▓▓ ← 2013 (72.90उ)
71मी ┤
70मी ┤ ▓
69मी ┤ ▓ ← 2025 (68.92उ – 16 जुलाई)
68मी ┤ ▓
67मी ┤
महत्वपूर्ण सीमा बिंदु
बाढ़ चेतावनी स्तर (वामिंग लेबल) : 70.26 मीटर
अत्यधिक बाढ़ सीमा (वामिंग लेबल ) : 73.90 मीटर (1978 में पहुंचा था)
2025 में अभी 68.92 मीटर दर्ज हुआ है, यानी खतरे की सीमा से लगभग 5 मीटर नीचे, लेकिन रफ्तार चिंताजनक है।