बच्चों को सिर्फ गवाह नहीं, सुरक्षा जरूरत वाले इंसान समझने की जरूरत : जस्टिस सूर्यकांत

हैदराबाद : देश में बच्चों के खिलाफ अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि ऐसे मामलों में न्यायिक व्यवस्था और बच्चों की सुरक्षा का सिस्टम खुद बच्चों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने इसी पर कड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि भारत का बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा ढांचा अभी भी बिखरा हुआ है और पूरी तरह सक्षम नहीं है। हमें बच्चों को सिर्फ गवाह नहीं, बल्कि पूरी देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले इंसान की तरह देखने की सोच विकसित करनी होगी। हैदराबाद में पॉक्सो कानून पर आयोजित स्टेट लेवल मीट 2025 के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में न्याय व्यवस्था को बच्चों के जख्मों को और न बढ़ाने वाला बनाना होगा। उन्होंने कहा कि जब तक बच्चे सही मायनों में न्याय महसूस नहीं करते, तब तक हमारा काम अधूरा है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा सिर्फ अदालत के अंदर तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। उन्हें घर, स्कूल, मोहल्ले और समाज में हर जगह सुरक्षित महसूस कराना जरूरी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब कोई बच्चा अपने साथ हुए अपराध की बार-बार पुलिस, शिक्षक, डॉक्टर, वकील और फिर जज के सामने कहानी सुनाता है, तो उसकी आवाज कमजोर पड़ जाती है। यही सिस्टम की असल खामी है। यह समस्या सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि सिस्टम की मूलभूत कमजोरी है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा सिर्फ कानूनी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य भी है। भारत जैसे सामाजिक देश में यह संविधान का भी वादा है। उन्होंने कहा कि बच्चों के पुनर्वास को किसी फुटनोट की तरह नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की बुनियाद बनाना होगा।