रथयात्रा में दिखती है इतिहास और परंपरा की झलक

रांची : शहर में रथयात्रा के दिन इतिहास और परंपरा की अनोखी झलक देखने का अवसर मिलता है. जिले के रातू, तोरपा, इटकी और जरियागढ़ में आज भी राजपरिवारों व जमींदारों की परंपरा जीवंत है, जो अपने इलाकों में हर साल रथ यात्रा निकालते हैं. इटकी में रथयात्रा की यह परंपरा 250 सालों से चल रही है. रथयात्रा के दिन पूरी रांची महाप्रभु जगन्नाथ की भक्ति में लीन दिखती है. इस दिन जिले के अलग-अलग इलाकों से प्रभु की रथयात्रा निकाली जाती है, जिसमें इतिहास की झलक नजर आती है. यहां राज परिवार और जमींदारों की परंपराओं को आज भी जीवंत रखा गया है. रांची के रातू, जरियागढ़, तोरपा और इटकी में ऐतिहासिक वर्षों पुरानी ऐतिहासिक रथयात्रा का आयोजन किया जाता है. इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं और जगन्नाथ स्वामी के प्रति अपनी आस्था व भक्ति दिखाते हैं.
छोटानागपुर की ऐतिहासिक रथयात्रा रातू किला स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर से निकाली जाती है. यहां बुधवार को मंदिर में भगवान श्रीजगन्नाथ का “नेत्रदान संस्कार” राजपुरोहित भोला नाथ मिश्रा व करुणा मिश्रा ने संपन्न करवाया. इस परंपरा की शुरुआत साल 1899 में रातू के 60वें महाराजा प्रताप उदय नाथ शाहदेव द्वारा की गयी थी, जिन्हें सपने में भगवान श्रीजगन्नाथ के दर्शन हुए थे. इसके बाद उन्होंने पुरी से कारीगर बुलाकर नीम की लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियां बनवाकर मंदिर की स्थापना की. रथयात्रा मंदिर से 500 मीटर दूर मौसीबाड़ी (शिव मंदिर) तक जाती है और उसी दिन वापस लौटती है. रथ पर राजपरिवार के सदस्य भी सवार होते हैं.

कर्रा प्रखंड स्थित जरियागढ़ की परंपरागत रथयात्रा आज भी राजपरिवार और ग्रामीणों के सामूहिक प्रयास से पारंपरिक तरीके से निकाली जाती है. यहां दो रथ यात्रा निकाली जाती है. एक राजपरिवार की ओर से और दूसरी ग्रामीणों द्वारा निकाली जाती है. रथ यात्रा की शुरुआत राजपरिवार द्वारा झाड़ लगाकर मार्ग शुद्धिकरण से होती है. भगवान को मौसीबाड़ी ले जाकर विशेष भोग अर्पित किया जाता है. इसमें कटहल का प्रसाद विशेष रूप से तैयार किया जाता है. रथयात्रा में ढोल-मृदंग, घंटे और जयकारों के साथ नगर भ्रमण कर भगवान को पुनः मंदिर में स्थापित किया जाता है.
तोरपा के बड़ाइक टोली स्थित जगन्नाथ मंदिर से निकाली जाने वाली रथयात्रा की परंपरा लगभग 200 साल पुरानी है. इस परंपरा को इलाके के पुराने जमींदार बड़ाइक परिवार की ओर से आगे बढ़ाया जा रहा है. परिवार के सदस्य विजय सिंह बड़ाइक बताते हैं कि पहले सगड़ गाड़ी को रथ बनाकर यात्रा करायी जाती थी. वर्तमान में भव्य मंदिर निर्माण का काम प्रगति पर है. मूर्तियों की पूजा मुरहू के दारला गांव निवासी श्याम सुंदर कर करते हैं. इनके पूर्वज पिछले 200 सालों से यह सेवा करते आ रहे हैं. इधर, कोटेंगसेरा गांव में भी 2013 से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जा रही है. यहां मंदिर में प्रतिदिन पांच बार भोग चढ़ाया जाता है.